बना के आशियाँ मेरा , वो छुप गया कहीं
दरों ,दीवार क़ो बस देखते फिरे हम यू ही
ना दोस्ती की कभी जोरे ज़ब्र से हमने यू ही
कहीं हर एक बात तन्हां खामोशियों से यू ही
बदगुमानी ही सही, होती रही मुझको कहीं
तेरा साया था जहां रोती रही रात भर यू ही
ये कहना जुर्म था 'अरू ' कौन बदहवास कही
खून बन के दौड़ता ही फिरा,बरसों रनाइयो में यू ही
copyright rai aradhana rai ©
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