Skip to main content

दिल


दर्द जब ज़ुबां देता है , खूबसूरत अहसास को जन्म देता है
पानी में उठते बुलबुलों कि तरह रोज़ मरते है रोज़ जीते है
क्यू फ़से है इस कफ़स में यहाँ ऐसी उलझन में यू रहते है
शिकवा हम यहाँ किस से करे मेरी दुनियाँ ही रूठ के बैठी है
एक तेरे नाम पे जीते है ,हॅंस के दुख भी अब झेल ही लेते है
इश्क है तुम से खुद को बहला कर हम भी तो जीते ही रहते है
आराधना राय
copyright : Rai Aradhana ©




मेरे नाम दिन के उजाले हुए है
अंधेरों को हम क्यों पाले हुए है
किन मज़बूरियों में ढाले हुए है
हालत तंग दिल में छाले हुए है
ख्वाब क्यों हमने फिर पाले हुए है
हसरतों कि ख्वाहिशें जाने हुए है


copyright : Rai Aradhana ©

Comments

Popular posts from this blog

नज़्म

अब मेरे दिल को तेरे किस्से नहीं भाते  कहते है लौट कर गुज़रे जमाने नहीं आते  इक ठहरा हुआ समंदर है तेरी आँखों में  छलक कर उसमे से आबसर नहीं आते  दिल ने जाने कब का धडकना छोड़ दिया है  रात में तेरे हुस्न के अब सपने नहीं आते  कुछ नामो के बीच कट गई मेरी दुनियाँ  अपना हक़ भी अब हम लेने नहीं जाते  आराधना राय 

ग़ज़ल

लगी थी तोमहते उस पर जमाने में एक मुद्दत लगी उसे घर लौट के आने में हम मशगुल थे घर दिया ज़लाने में लग गई आग सारे जमाने में लगेगी सदिया रूठो को मानने में अजब सी बात है ये दिल के फसाने में उम्र गुजरी है एक एक पैसा कमाने में मिट्टी से खुद घर अपना बनाने में आराधना राय 

नज़्म

 उम्र के पहले अहसास सा कुछ लगता है वो जो हंस दे तो रात को  दिन लगता है उसकी बातों का नशा आज वही लगता है चिलमनों की कैद में वो  जुदा  सा लगता है उसकी मुट्टी में सुबह बंद है शबनम की तरह फिर भी बेजार जमाना उसे लगता है आराधना