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मेरी,तुम्हारी बातें



बातें जो ख़त्म नहीं होती , शौक जनून नहीं होता। 
"शौके -ए -जनून है मुझे ,और जनून इश्क है ,ये ही इश्क मेरा खुदा रहा"। 
बचपन से कहानी कहने का शौक था,मेरी कहानियाँ भी अजीब होती थी,मॉडर्न ज़माने की चिडिया, बोलू कुत्ता, किसी भी खाली पीरियड में लड़कियों के गोलधारे  के बीच मे बैठ कर अपनी खुद की कहानियों को अंजाम दिया करती थी। कब मेरी कहानियाँ एक  मेरी हमजोलियों को पसंद आने लगी और न जाने कब  मैं कहानियों को लिखने लगी । ये मैंने जाना ही नहीं अगर मेरी बहन के हाथ कुछ आध लिखे पन्नें न लगे होते तो शायद कभी सिलसिलेवार लिखने  की कोशिश, कोशिश  ही रह जाती । वो मेरी मझली दीदी ही थीं जिन्होने मेरी कोशिशो को शक्ल दी । आज उन्हीं कहानियों को फिर से नए रूप मे लिखने की कोशिश दोहरा रही हूँ । 

अगर आप इस ब्लॉग से जुड़े तो पाएंगे रोज़ एक कहानी जो आपकी बातों से गली से जुडी होगी अगर आप इस ब्लॉग पर नया कुछ अपना लिखना चाहे अपंने नाम के साथ तो आप का स्वागत है । आज एक कहानी की शुरुआत की है । 
कहानी का नाम है," जन्म "
copyright rai aradhana rai ©


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बाते कहानियों सी 

विश्वास इस नाम कि कहानी तीन घण्टे में पूरी हो गई , जिसका श्रेय 
राग शंकरा पर आधारित दुर्गा की स्त्रुति को है, कुछ सुने ,कुछ अनसुने 
बोलो को एक कर स्त्रुति इस प्रकार है 
विश्वास  …  यू तो लिखनी नहीं थी इस कहानी का जन्म महज़ तीन घंटे 
में हुआ।  दुर्गा की एक स्त्रुति लिखी जो इस तरह है। 
     चङ , मुंड  विनाशनी,                                                          शक्ति रूप विराजनी  
                                   अम्बा ,जगतजननी ,कार्यविधायनी   
                                महिषा सुर मर्दनी , करवीर निवासनी  
                                दानव दुष्ट संघारणीबहुबल प्रदायनी 
                               
  नारी शक्ति रूपा ,दुर्गा , भवानी , 
                                   सुरेश्वरिनिर्बल को बल दायनी 

                                 सबल रूप ,शक्ति तुम देवी हो धारति  
                                कण -कण , ये वसुन्धरा तुम्हे पुकारती   
                                नारी , बिना इस जगत को कौन जान पाता  
                              तूझे ही  तिमिर घौर रात्री में , जगत ध्याता                                          
                               तू ही , विद्या दात्री , शक्ति समन्विता  
                               हर  नारी मे , ज्वाला बन हुँकारतीपुकारती  

इसी को मन में रख कर दुर्गा शक्ति नाम से कहानी लिखी थी उसी कहानी को विश्वास नाम से ब्लॉग पर उतार दिया। मेरी सोच के अनुसार विश्वास ही वो भाव है जो पत्थर को मूरत रूप दे ईश्वर को भी जगा सकता है।           इस लिए   कहानी का नया नाम दिया। जो है तो संघर्ष की कहानी है बरहाल संघर्ष की दास्तान चन्द शब्दों की नहीं होती।                      
 मेरी आने वाली कहानियाँ नारी मन को उजागार करती रहेंगी। 
अना नाम से कुछ नज़म कुछ ग़ज़ल लिखे है उम्मीद है पसंद आयेंगे 

कॉपीराइट @आराधना राय 
copyright rai aradhana rai ©


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नज़्म

अब मेरे दिल को तेरे किस्से नहीं भाते  कहते है लौट कर गुज़रे जमाने नहीं आते  इक ठहरा हुआ समंदर है तेरी आँखों में  छलक कर उसमे से आबसर नहीं आते  दिल ने जाने कब का धडकना छोड़ दिया है  रात में तेरे हुस्न के अब सपने नहीं आते  कुछ नामो के बीच कट गई मेरी दुनियाँ  अपना हक़ भी अब हम लेने नहीं जाते  आराधना राय 

ग़ज़ल

लगी थी तोमहते उस पर जमाने में एक मुद्दत लगी उसे घर लौट के आने में हम मशगुल थे घर दिया ज़लाने में लग गई आग सारे जमाने में लगेगी सदिया रूठो को मानने में अजब सी बात है ये दिल के फसाने में उम्र गुजरी है एक एक पैसा कमाने में मिट्टी से खुद घर अपना बनाने में आराधना राय 

नज़्म

 उम्र के पहले अहसास सा कुछ लगता है वो जो हंस दे तो रात को  दिन लगता है उसकी बातों का नशा आज वही लगता है चिलमनों की कैद में वो  जुदा  सा लगता है उसकी मुट्टी में सुबह बंद है शबनम की तरह फिर भी बेजार जमाना उसे लगता है आराधना