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खो गई है.





वो सड़क जो तेरे घर तक जाती थी
कहीं मुझ से खो गई है.
मेरी आँखों से ओझल हो किसी और
कि वो अब हो गई है
 मालूम नहीं अब किस नाम से मशहूर
 वो यहा हो गई है
कौन सा मोड़ था मुड़ गए थे और वो यू
 ही खफ़ा हो गई है
रात कि वीरानियाँ दिल में लिए भटके
आज वो चुप हो गई है
नया सा नाम लेकर पुराने लिबास में
कहा खड़ी हो गई है
ज़िन्दगी के कौन से दोराहे पर मुझ से
जुदा  हो गई है
वक़्त और हालत कि  गर्दिश में यू ही  वो
कहीं  फिर खो गई है
नाकाम ख्वाहिशें रास्ते के ज़द में मंज़िलों
से दूर हो गई है
आराधना राय 

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राहत

ना काबा ना काशी में सकूं मिला दिल को दिल से राहत थी जब विसाल -ए -सनम मिला। ज़िंदगी का कहर झेल कर मिला बीच बाज़ार में खुद को  नीलम कर गया यू  हर आदमी मिला राह में वो इस तरह कोई चाहतों से ना मिला रूह बेकरार रहे कोई "अरु" और वो अब्र ना कभी हमसे यू मिला आराधना राय copyright :  Rai Aradhana  ©

ग़ज़ल

लगी थी तोमहते उस पर जमाने में एक मुद्दत लगी उसे घर लौट के आने में हम मशगुल थे घर दिया ज़लाने में लग गई आग सारे जमाने में लगेगी सदिया रूठो को मानने में अजब सी बात है ये दिल के फसाने में उम्र गुजरी है एक एक पैसा कमाने में मिट्टी से खुद घर अपना बनाने में आराधना राय 

नज़्म

अब मेरे दिल को तेरे किस्से नहीं भाते  कहते है लौट कर गुज़रे जमाने नहीं आते  इक ठहरा हुआ समंदर है तेरी आँखों में  छलक कर उसमे से आबसर नहीं आते  दिल ने जाने कब का धडकना छोड़ दिया है  रात में तेरे हुस्न के अब सपने नहीं आते  कुछ नामो के बीच कट गई मेरी दुनियाँ  अपना हक़ भी अब हम लेने नहीं जाते  आराधना राय