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दर्द


साभार गुगल इमेज
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दर्द जब  ज़ुबां देता है , खूबसूरत अहसास को  जन्म देता है 
पानी में उठते बुलबुलों कि तरह रोज़ मरते है रोज़ जीते है 

क्यू फ़से  है इस कफ़स में यहाँ ऐसी  उलझन में यू रहते है
 शिकवा हम यहाँ किस से करे मेरी दुनियाँ ही रूठ के बैठी है

एक तेरे नाम पे जीते है ,हॅंस के दुख भी अब  झेल ही लेते  है
 इश्क है तुम से खुद को बहला कर हम भी तो जीते ही  रहते है 
आराधना राय

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राहत

ना काबा ना काशी में सकूं मिला दिल को दिल से राहत थी जब विसाल -ए -सनम मिला। ज़िंदगी का कहर झेल कर मिला बीच बाज़ार में खुद को  नीलम कर गया यू  हर आदमी मिला राह में वो इस तरह कोई चाहतों से ना मिला रूह बेकरार रहे कोई "अरु" और वो अब्र ना कभी हमसे यू मिला आराधना राय copyright :  Rai Aradhana  ©

ग़ज़ल

लगी थी तोमहते उस पर जमाने में एक मुद्दत लगी उसे घर लौट के आने में हम मशगुल थे घर दिया ज़लाने में लग गई आग सारे जमाने में लगेगी सदिया रूठो को मानने में अजब सी बात है ये दिल के फसाने में उम्र गुजरी है एक एक पैसा कमाने में मिट्टी से खुद घर अपना बनाने में आराधना राय 

नज़्म

अब मेरे दिल को तेरे किस्से नहीं भाते  कहते है लौट कर गुज़रे जमाने नहीं आते  इक ठहरा हुआ समंदर है तेरी आँखों में  छलक कर उसमे से आबसर नहीं आते  दिल ने जाने कब का धडकना छोड़ दिया है  रात में तेरे हुस्न के अब सपने नहीं आते  कुछ नामो के बीच कट गई मेरी दुनियाँ  अपना हक़ भी अब हम लेने नहीं जाते  आराधना राय