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लधु -कथा

 जीत
जंगल के अधिकारीयों से बच बचा के मगरू ने आज हिरन के झुण्ड पर घात लगाने की ठानी थी । किस्मत भी मगरू के साथ थी । हिरन का झुण्ड मगरू के समाने आ गया देख भाल कर मगरू ने घात हिरन के छोने पर लगाई , पर आखिरी पल में हिरनी मगरू और उसके भाले के बीच आ गई , छोटा बच्चा भाग कर अपने झुण्ड में जा मिला । मगरू की आँखों में जीत की चमक थी ,घायल हिरनी अपनी बड़ी - बड़ी आँखों से मगरू को देख रही थी , अगर वो बोल सकती यही बोलती की जीत एक माँ की हुई थी जिसने अपने प्राण दे कर आज अपने बच्चे को झुण्ड में सुरक्षित कर भेज़ दिया था ।
आराधना राय अरु

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कैसे -कैसे दिन हमने काटे है  अपने रिश्ते खुद हमने छांटे है पाँव में चुभते जाने कितने कांटे है आँखों में अब ख़ाली ख़ाली राते है इस दुनिया में कैसे कैसे नाते है तेरी- मेरी रह गई कितनी बातें है दिल में तूफान छुपाये बैठे है  बिन बोली सी जैसे बरसाते है

ग़ज़ल

लगी थी तोमहते उस पर जमाने में एक मुद्दत लगी उसे घर लौट के आने में हम मशगुल थे घर दिया ज़लाने में लग गई आग सारे जमाने में लगेगी सदिया रूठो को मानने में अजब सी बात है ये दिल के फसाने में उम्र गुजरी है एक एक पैसा कमाने में मिट्टी से खुद घर अपना बनाने में आराधना राय 

राहत

ना काबा ना काशी में सकूं मिला दिल को दिल से राहत थी जब विसाल -ए -सनम मिला। ज़िंदगी का कहर झेल कर मिला बीच बाज़ार में खुद को  नीलम कर गया यू  हर आदमी मिला राह में वो इस तरह कोई चाहतों से ना मिला रूह बेकरार रहे कोई "अरु" और वो अब्र ना कभी हमसे यू मिला आराधना राय copyright :  Rai Aradhana  ©