Skip to main content

Posts

Showing posts from January 8, 2015

बचपन

  बचपन   कभी  बेवज़ह , रूठना   और     मनना,   बिना बात के वो  पहरो   खिलखिलाना   कही देर तक गुम हो,  गुप चुप यू खेलना  दोपहर  गर्मियों  की इस तरह से बिताना   वो हाथो से  तितली,  पकड़ने की   बाते   और  बातो ही बातो में  दिन  का  गुज़रना  वो पीठु का गिरना , वो गिली का ढूढ़ना   वो  कंचो का पीटना , स्तापु का टूट जाना  हर एक बात में चीख चिल्लाहट करना वो खुश हो कर , जीत का जश्न मानना   वो झूले पे  झूलने की  हसीं , जवां  बाते   वो आसमा को  पींगे  बढ़ाके छु  लेना  वो बचपन के दिन थे और ख्वाबो  की राते  जैसे हो शबनम के मोती बिखेरने की बाते copyright : Rai Aradhana © अना * \आराधना