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Showing posts from July 2, 2016

ग़ज़ल ---------

साभार गुगल    इश्क में किसने कैसा सवाल रखा है    सिर्फ मजबूरियों को उछाल रखा है     तुझे पा कर भूल जाना नसीब गर है      ज़ख़्म खा कर दिल को बहाल रखा है         उसकी रुसवाई मेरी रुसवाई बनी है    यही कह कर खुद को संभाल रखा है    बीते लम्हों को दिल से लगा रखा है    पूछ हमने कैसे तिरा ख्याल रखा है    रकीब ने घर का रास्ता देख रखा है  "अरु"  परेशनियों को हमने मोल रखा है     आराधना राय "अरु"    मोल--- खरीद   रकीब ---- दुश्मन