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Showing posts from June 27, 2015

दिदार

ज़िंदगी हँस के यू  बहल जाती तो अच्छा था नया पैग़ाम सुना जाती तो कुछ अच्छा था। रोज़ वादे कर के वो जाती तो कुछ अच्छा था तेरा दिदार भी  कुछ कराती  बहुत अच्छा था वो मुझ से रुख़्सत ना हुई होती तो अच्छा था सुनहरा सा ख़्वाब दिखा जाती तो अच्छा था सफऱ को  मुक़ाम  बना जाती तो ही अच्छा था तराने सुना कर  "अरु" जाते तो ही अच्छा था आराधना राय copyright :  Rai Aradhana   ©

राज़

           ---------------------------------------------------- चले जो बच के साहिलों से उसमें भी तो कुछ है लहरों से बच कर कश्ती चली उसमे भी कुछ है आषाढ़ कि बारिश यू ही लगे सावन कि झंकार है उसकी बात नहीं कोई यू ही बेबात उसमें  कुछ है मंज़िले अपना जब रास्ता खुद ही कहीं यू ढूँढती है दिल तो रोया आँख में आसूँ ना आए उसमें कुछ है बादल तो बरसे खूब पर तुम नहीं क्यू नही तुम आए उस में जो बात है "अरु"उसमें भी राज़ भी तो कुछ है आराधना राय copyright :  Rai Aradhana  ©