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राज़

         
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चले जो बच के साहिलों से उसमें भी तो कुछ है
लहरों से बच कर कश्ती चली उसमे भी कुछ है

आषाढ़ कि बारिश यू ही लगे सावन कि झंकार है
उसकी बात नहीं कोई यू ही बेबात उसमें  कुछ है

मंज़िले अपना जब रास्ता खुद ही कहीं यू ढूँढती है
दिल तो रोया आँख में आसूँ ना आए उसमें कुछ है

बादल तो बरसे खूब पर तुम नहीं क्यू नही तुम आए
उस में जो बात है "अरु"उसमें भी राज़ भी तो कुछ है
आराधना राय


copyright : Rai Aradhana ©

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ग़ज़ल

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राहत

ना काबा ना काशी में सकूं मिला दिल को दिल से राहत थी जब विसाल -ए -सनम मिला। ज़िंदगी का कहर झेल कर मिला बीच बाज़ार में खुद को  नीलम कर गया यू  हर आदमी मिला राह में वो इस तरह कोई चाहतों से ना मिला रूह बेकरार रहे कोई "अरु" और वो अब्र ना कभी हमसे यू मिला आराधना राय copyright :  Rai Aradhana  ©