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Showing posts from March 26, 2016

कुरुक्षेत्र

ईष्या द्वेष के मारों का हाल ना पूछे स्वार्थ हुआ मजहब कुछ हाल ना पूछे -------------------------------------------------- स्वार्थ से हुए अंधे धृतराष्ट्र दुःशासन यहाँ सभी कर्म बन गया किसका कुरुक्षेत्र का रणक्षेत्र तभी आस्था के प्रश्न पर सब यहाँ मारीच से निकले ईश्वर जिनके लिए छलिया कपटी धूर्त निकले मंदिर , मस्जिद, गिरजा बना कर पूजते है सभी वक़्त आने पूजा का घर जला जाता है हर कोई आज पूज लो भगवान जितने बना बैठे हर कही समय कि धारा में वो भी बह जायेगे कहीं ना कहीं बिजलियों के बीच रहता है जैसे हर यहाँ हर कोई गरीब का साया बिना बात छीन लेता है हर कोई ईशु, मीरा, सुकरात ज्ञानेश्वर बिष पी जी गए सभी मसीहा आ कर दुनियाँ में रो कर क्या गए यहोँ सभी भगवान को परख डालोगे परख नालियों में तूम सभी स्वार्थ के क्या कहने स्वयं को विधाता बुलाते हो सभी आराधना राय "अरु"

नज़्म,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,, गीत

गीत बहारों के नाम लिखती हूँ मैं तेरा इंतज़ार करती हूँ रोशनी कम ना थी मेरे दिल में बस तेरा इंतखाब करती हूँ सुरमई शाम जब भी आती है  साथ  खुशबु  संग लाती है लौट आएगी तेरे दामन में बच कर ख़ुशी कहाँ जाने वाली है मैं सजा लुंगी चाँद तारों को नूर कि इबादत  कहाँ होने वाली है रौशनी से कहाँ दिल खाली है  किस्मत  की शाम ना ढलने वाली है आराधना राय "अरु"