Skip to main content

कुरुक्षेत्र





ईष्या द्वेष के मारों का हाल ना पूछे
स्वार्थ हुआ मजहब कुछ हाल ना पूछे
--------------------------------------------------
स्वार्थ से हुए अंधे धृतराष्ट्र दुःशासन यहाँ सभी
कर्म बन गया किसका कुरुक्षेत्र का रणक्षेत्र तभी
आस्था के प्रश्न पर सब यहाँ मारीच से निकले
ईश्वर जिनके लिए छलिया कपटी धूर्त निकले
मंदिर , मस्जिद, गिरजा बना कर पूजते है सभी
वक़्त आने पूजा का घर जला जाता है हर कोई
आज पूज लो भगवान जितने बना बैठे हर कही
समय कि धारा में वो भी बह जायेगे कहीं ना कहीं
बिजलियों के बीच रहता है जैसे हर यहाँ हर कोई
गरीब का साया बिना बात छीन लेता है हर कोई
ईशु, मीरा, सुकरात ज्ञानेश्वर बिष पी जी गए सभी
मसीहा आ कर दुनियाँ में रो कर क्या गए यहोँ सभी
भगवान को परख डालोगे परख नालियों में तूम सभी
स्वार्थ के क्या कहने स्वयं को विधाता बुलाते हो सभी
आराधना राय "अरु"

Comments

Popular posts from this blog

कैसे -कैसे दिन हमने काटे है  अपने रिश्ते खुद हमने छांटे है पाँव में चुभते जाने कितने कांटे है आँखों में अब ख़ाली ख़ाली राते है इस दुनिया में कैसे कैसे नाते है तेरी- मेरी रह गई कितनी बातें है दिल में तूफान छुपाये बैठे है  बिन बोली सी जैसे बरसाते है

ग़ज़ल

लगी थी तोमहते उस पर जमाने में एक मुद्दत लगी उसे घर लौट के आने में हम मशगुल थे घर दिया ज़लाने में लग गई आग सारे जमाने में लगेगी सदिया रूठो को मानने में अजब सी बात है ये दिल के फसाने में उम्र गुजरी है एक एक पैसा कमाने में मिट्टी से खुद घर अपना बनाने में आराधना राय 

राहत

ना काबा ना काशी में सकूं मिला दिल को दिल से राहत थी जब विसाल -ए -सनम मिला। ज़िंदगी का कहर झेल कर मिला बीच बाज़ार में खुद को  नीलम कर गया यू  हर आदमी मिला राह में वो इस तरह कोई चाहतों से ना मिला रूह बेकरार रहे कोई "अरु" और वो अब्र ना कभी हमसे यू मिला आराधना राय copyright :  Rai Aradhana  ©