मन कि वृद्धि -------------------- रोज़ - एक ही सोच थी सब कुछ बदल जायेगा वक्त के साथ परेशानी चली जाएगी और जीवन सरल हो भी यही पायेगा। उस दिन वो धबरायेगी नहीं साहस से जीवन महकाएगी इस कशमकश में जी पायेगी उस लड़की के पिता नहीं थे पर ज़िम्मेदारी थी बोझ थी इसलिए ज़िन्दगी हँस कर भुला रोज़ -यही सोचती थी सब परेशानी चली जायेगी जीवन जीने के लिए कोई सरल युक्ति भी आएगी। पर सोच लेने से मात्र से जीवन आसान कब हुआ है ऑफिस में जीवन संघर्ष हुआ है लेने - देना से ही यहॉ सब है कनेक्शन प्रमोशन यही सब मन में अरमान आस भी एक तनख्वाह में बढ़ोतरी हो जाये, पर ऐसा कब हुआ, ऑफिस में सब से कम काम करने वाली सुंदरी भी उस से बाज़ी मार गई अप्रेज़ल वाले दिन सब पा गई ज़ुबा पर ताले मन बेचैन थे सबने नया सबक सीखा था। नए बॉस चाय पीते देखा था , बात प्रेम या प्रीत कि नहीं थी अन्तर मन,भी इन्टर- क...
मेरी कथाओं के संसार में आप का स्वागत है। लेखिका द्वारा स्वरचित कविताएँ है इन के साथ छेड़खानी दंडनीय अपराध माना जाएगा । This is a original work of author copy of work will be punishable offense.