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Showing posts from September 27, 2016

नज्म

 नज्म माना जीने कि उम्मीद है कम फिर भी उम्मीद है मेरे जीने की सुलगती रहती है आवे की तरह सोच है मेरी या आग सीने की . रोज़ होती है आंखे अश्कबार सीख ली हमने अदा जीने की धडकती  रहती है सीने में कही लो लगा दी हमने आग सीने की