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Showing posts from March 18, 2016

नज़्म

तेरे जाने के बाद तुझसे गिला नहीं शिकवा,शिकायत आरज़ू ,बाकी नहीं पत्थर है दिल नहीं जिंदगी में जुस्तजू तेरे सिवा कोई नहीं आती बहारें लौट जाए तेरे हसीन मकान से ऐसा कब हो सका है किसी चारागार में जीने के लिए काफ़ी है मेरी टूटी सी झोपड़ी तेर फरेबी वादों से अच्छी है खरी बात नए मरहले अभी है इन मरहलों के बाद आराधना राय "अरु"