पर्यावरण पर कविता धरती का दुःख …………………….............................................. वो बुरी शक्ल लिए मिलने आई थी हाथों मैं कटोरा भीख का ले आई थी रूखे -सूखे केश लिए कहने आई थी आहात थी दुःख साथ ही ले आई थी आँखों में आँसू भर वो जब कराही थी दर्द कि आवाज़ नहीं सुनाने आई थी धरती थी अपनी पीड़ा बताने आई थी कौन सी त्रासदी उसे नहीं रास आई थी वृक्ष , वन , नदी सब का दर्द ले आई थी बात किसी कि समझ में नहीं आई थी प्रकृति का उपहास मनुज ने उड़ाया था विपति उपहार स्वरुप घर ले आया था जब धरा ने तीष्ण हथियार ही उठाया था हाय किस्मत ने भी तो बड़ा ही रुलाया था आदति जब श्रृंगार कर के स्वयं ही आई थी मनुज तूझे बलात्कार क्यों रास आया था आराधना राय
मेरी कथाओं के संसार में आप का स्वागत है। लेखिका द्वारा स्वरचित कविताएँ है इन के साथ छेड़खानी दंडनीय अपराध माना जाएगा । This is a original work of author copy of work will be punishable offense.