खामोश हो बहुत कुछ बोलती है ना जाने कैसे कैसे राज़ खोलती है जुबां चुप रही मगर नज़र बोलती है दूर से ही ख्वाबों को बस देखती है मेरे दिल के आईने चमक उठते है फिर कोई ख्वाब बन हमें उठता है क्यू चमक उठती है आँखे मेरी , क्यू कई ख्वाबों ने दस्तक दी है, तेरे साथ वफ़ा का किया एहतराम पासबा तेरे होके ज़फा बोलती है हम ही अनजान थे रस्म -ए- दुनिया
मेरी कथाओं के संसार में आप का स्वागत है। लेखिका द्वारा स्वरचित कविताएँ है इन के साथ छेड़खानी दंडनीय अपराध माना जाएगा । This is a original work of author copy of work will be punishable offense.