आज़ाद नज़्म पेड़ कब मेरा साया बन सके धुप के धर मुझे विरासत में मिले आफताब पाने की चाहत में नजाने कितने ज़ख्म मिले एक तू गर नहीं होता फर्क किस्मत में भला क्या होता मेरे हिस्से में आँसू थे लिखे तेरे हिस्से में मेहताब मिले एक लिबास डाल के बरसो चले एक दर्द ओढ़ ना जाने कैसे जिए ना दिल होता तो दर्द भी ना होता एक कज़ा लेके हम चलते चले ----- आराधना राय कज़ा ---- सज़ा -- आफताब -- सूरज ---मेहताब --- चाँद
मेरी कथाओं के संसार में आप का स्वागत है। लेखिका द्वारा स्वरचित कविताएँ है इन के साथ छेड़खानी दंडनीय अपराध माना जाएगा । This is a original work of author copy of work will be punishable offense.