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Showing posts from May 30, 2015

ज़िंदगी

एक शज़र ही काफ़ी है साया देने को  एक चिंगारी  बहुत है आग लगाने को  फिर  जाने क्यों गुलिस्तां जल जाते है  कितने ही काफ़िले मरघट तक जाते है  वो कौन है जो बस खुदा पा ही  जाते है  चन्द लम्हें ज़िन्दगी के जी ही जाते है   हमें ज़िंदगी लगती है सदी  मनाने को  आराधना राय