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Showing posts from June 12, 2015

बरसों

ना जाने क्यों कोई साहिल से टकराया बरसों गुज़रते वक़्त को ठहरा हुआ यू ही पाया बरसों ना कारवां ना मंज़िल कोई कहीं भी पाया बरसों इल्ज़ाम हमने खुद ही उठाये यहॉ पे कई बरसों तुझ से अपने दिल का हाल सुनाया यू ही  बरसों रोये तेरे संग भी कभी मुस्कुराये हम कई बरसों जा के वो क्यू ना आये कभी जो गए यहा से बरसों वो हमें खुद ना कभी ढूंढ पाये अपने घर में बरसों आराधना राय ©