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बरसों





ना जाने क्यों कोई साहिल से टकराया बरसों
गुज़रते वक़्त को ठहरा हुआ यू ही पाया बरसों

ना कारवां ना मंज़िल कोई कहीं भी पाया बरसों
इल्ज़ाम हमने खुद ही उठाये यहॉ पे कई बरसों

तुझ से अपने दिल का हाल सुनाया यू ही  बरसों
रोये तेरे संग भी कभी मुस्कुराये हम कई बरसों

जा के वो क्यू ना आये कभी जो गए यहा से बरसों
वो हमें खुद ना कभी ढूंढ पाये अपने घर में बरसों



आराधना राय©

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ग़ज़ल

लगी थी तोमहते उस पर जमाने में एक मुद्दत लगी उसे घर लौट के आने में हम मशगुल थे घर दिया ज़लाने में लग गई आग सारे जमाने में लगेगी सदिया रूठो को मानने में अजब सी बात है ये दिल के फसाने में उम्र गुजरी है एक एक पैसा कमाने में मिट्टी से खुद घर अपना बनाने में आराधना राय 

राहत

ना काबा ना काशी में सकूं मिला दिल को दिल से राहत थी जब विसाल -ए -सनम मिला। ज़िंदगी का कहर झेल कर मिला बीच बाज़ार में खुद को  नीलम कर गया यू  हर आदमी मिला राह में वो इस तरह कोई चाहतों से ना मिला रूह बेकरार रहे कोई "अरु" और वो अब्र ना कभी हमसे यू मिला आराधना राय copyright :  Rai Aradhana  ©
कैसे -कैसे दिन हमने काटे है  अपने रिश्ते खुद हमने छांटे है पाँव में चुभते जाने कितने कांटे है आँखों में अब ख़ाली ख़ाली राते है इस दुनिया में कैसे कैसे नाते है तेरी- मेरी रह गई कितनी बातें है दिल में तूफान छुपाये बैठे है  बिन बोली सी जैसे बरसाते है