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Showing posts from April 10, 2015

नव नींव

साभार गुगल इमेज़ यू अलग -विलग हो जैसे नदी के दो तीर बीच में बह रहा जीवन शांत ,धीर ,गंभीर प्रणय कलापों से दूर कर्मों के वीर धरे मस्तक पर अपने  नित नई पीर ध्वस्त  हो जब आडंबर पड़े समाज कि नव नींव कितने कुचले रीति के नीचे हूए म्लान ,क्लांत नहीं राज्य तम का गहराये जब आलोकित हो दीप आराधना राय

उहापोस

रोज़ रोज़ कि उहापोस से मैं स्वयं  डरती हूँ  ताने -बाने से सपनों के  ही कही बुनती हूँ  समय कि चोरी होने भी घबराती  नहीं हूँ  लम्हा लम्हा सा ज़िन्दगी को बांधती हूँ  डर रही हूँ या मैं अपने में जीती जा  रही हूँ  यह भी नहीं अब तुझे बहलाना  चाहती  हूँ  खुल कर विरोध नहीं करती पूछती फिरती हूँ    अपनों पे मरना  अधिकारों से लड़ना जानती हूँ पराई पीर भी अब जी कर अभी यहाँ  जीवित रही   जिस के लिए मर कर जीना भी अब मैं जानती  हूँ  \ आराधना 

किसकी पुकार है

साभार गुगल इमेज़ इस गंदले उथले पानी में कुछ भी साफ़ नहीं है ठहरे पानी में किसकी परछाई नज़र आती है खुद को भी पहचानना भी तो  अब सरल नहीं है देख कर आत्मा भी यहाँ पर क्यों तड़पती नहीं है किसकी पुकार है  आवाज़ बन के उभरती रही  है कौन जाने वक्त ने यहाँ कैसी क्या चाल चली  है जंग लगे कितने  दिलों में  वो कौन से अरमान है जिन  के लिए चले जब राह ,में वो भी पास नहीं है रास्ते ही रास्ते है मंज़िल का भी अब पता नहीं है इससे आगे मेरे लिए भी क्या कहे जगह  नहीं  है आराधना

ज़िन्दगी मिलती है

साभार गूगल इमेज ज़िन्दगी ख्वाब के सहारे नहीं कटती है दरिया सी  बस कहीं बहती ही रहती है मन कि किताब पर गीत नए लिखती है सुनहले संसार के कुछ शब्द नए बुनती है प्रीत ही हो जीवन बस ये ही कहाँ कहती है आशा -निराशा के दोनों पल यही चुनती है  यथार्थ के  मैदानों पर सपनों सी पलती है आँखों कि किरकिरी बन कभी ये मिलती है आराधना