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Showing posts from March 10, 2015

मेरी दुनियाँ का नाता,

मेरी दुनियाँ का ये नाता, हर रोज़ निभाया जाता है रोज़ मिटा के ये तकदीरे  , रोज़ बना  दी जाती है।     हर रोज़ सुबह लगते मेले हर शाम तमाशे बंद हुये   हर बार ही परिभाषा  बदली  हर रिश्ते की ,हर नाते की।  हर रोज़ यहाँ बाजार सजे  हर रोज़ ही आई दिवाली  ये जिस्म ढले ,ये रूह बनी।  ये सॉस रही ,चलती रूकती। रुका न  कोई कार्ये व्यापार यहॉ  मेरे नातो का,मेरे इन रिश्तो का कोई मोल यहॉ फिर कब  रहता है  यहाँ रोज़ ही बनते है ये जब  रिश्ते।   तेरी दुनियाँ में जब हम  आये है  देखे तेरा अब तेरा भी ईमान यहाँ   जो गए मुसाफिर  इस जग से  ही  अब उनका फिर शेष निशान  कहाँ।  आराधना  प्रेरणात्मक आभार  स्वर्गीय पंडित त्रिवेणी राय।  

शम्मा-ए -रौशन जलाये रखना ।

तुम पे  इल्ज़ाम लगायेगी दुनियाँ लेकिन दिल में शम्मा -ए -रौशन  जलाये रखना । वो जो नश्तर भी चुभोयेंगे दिल में गर  तेरे अपने ज़ख्मों को खुद से ही  छिपाए रखना। कुछ भी सवाल करें दुश्वार हो ज़ीना  लेकिन दिल के आईने को तू ना कभी  दरकने देना। बहूत पैनी हैं ये दुनियाँ कि निग़ाहें ये  ''अरू '' अपनी आँखों को तू नहीं कभी  झुकने  देना। copyright : Rai Aradhana ©