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Showing posts from March 6, 2015

चोट का दर्द

अब के गया तो फिर नहींआएगा वो। डूबते सूरज सा पिघल जायेगा। चोट जब लगती है दिलों -ईमान पर आदमी क्या लोहा भी पिघल जाता है किसी दूकान पर। एक साया रह जाता है सुहानी याद का।          

याद आई

बहुत याद आई फिर बचपन की अपने, दूर बहुत दूर जब सपने सजा करते  थे । पास आ जाता था मन का आकाश भी, सीमा से परे जाती मन की कल्पना थी। मुट्ठियों में जब बांध जाता  आकाश  था हिरन की कुलाचे भरते भागते  मन  थे। फिर याद आया वो बीता जमाना मुझे बड़ा  दीवाना ज़माना ये  लगा था मुझे। आराधना copyright : Rai Aradhana ©

क्या चाहती हूँ

गीत हुँ मै, गुनगुनाना चाहती हूँ। धूल हुँ मैं , पलकों उठना चाहती हूँ।  पूर्णता -अपूर्णता नहीं जानती हूँ।  क्षुब्ध हुँ पर मैं जीवन चाहती हूँ।  टूटे पत्थरों को दिन-रात जोड़ती हूँ ।  कौन सी ज़िद्द है नहीं ये जानती हूँ ।  एक मैं देवालय बनाना चाहती  हूँ।  देव उसमें खंडित बसाना चाहती हूँ। copyright : Rai Aradhana © बहुत याद आई फिर बचपन की अपने, दूर बहुत दूर जब सपने सजा करते  थे । पास आ जाता था मन का आकाश भी, सीमा से परे जाती मन की कल्पना थी। मुट्ठियों में जब बांध जाता  आकाश  था हिरन की कुलाचे भरते भागते  मन  थे। फिर याद आया वो बीता जमाना मुझे बड़ा  दीवाना ज़माना ये  लगा था मुझे। आराधना copyright : Rai Aradhana ©