Skip to main content

Posts

Showing posts from November 26, 2015

बारात चली थी

बारात चली थी ----------------------------------------- वो हाथों कि मेंहदी दिखाते है हमारे दिल को क्यू खूँ में नहलाते है उसकी आंखों में सिर्फ लाली थी वो किसी और कि हमेशा जो होने वाली थी सब ने लाल जोड़ें में सजे देखा उस के दिल के दर्द को किसी ने ना देखा था तमाम खुशियों कि बारात सजी थी बड़ी ख़ामोशी से इश्क़ कि अर्थी सजी थी बडी धूम से डोली उठी थी किसे पता "अरु " लाचारी लेकर चली थी कोई युग हो उस में गरीब की बेटी जली अग्नि-परीक्षा बारम्बार सिया की हुई थी सोते हुए भारत को कैसे कोई जगाए रण से लौट कर जो सिपाही ना कभी आए हजारों सदियों को अपने में लपेटे नारी क्यों तेरा आँचल हमेशा ही कोई खी दहेज़ की आंधियाँ घर हर किसी का लुटे इन्हीं नाकामियोंसे मेरा देश जूझे आराधना राय "अरु"