Skip to main content

Posts

Showing posts from March 30, 2016

नज़्म ------------ गम

मर गया कोई रोना भी नही आया उसको दुनियाँ ने कितना अकेला बनाया मुझको रौंद कर पूछते है फूल  नहीं भाया उसको रौशनी के लिए अँधेरा तूने बनाया  मुझको खुद जी कर मौत का कफ़न पहनाया मुझको अपने निवालों के लिए भूखा मरवाया मुझको बिक गए दर्द मेरे गीत बन बहलाया  किसको आज नहीं कल कौनमार कर पछताया  किसको इंसानियत मर गई  ज़िक्र तक ना भाया उसको आराधना राय "अरु"

अतुकांत नज़र आएगी

साँस  बन कर  मेरे साथ रह जाएगी जिंदगी में सिर्फ तू नज़र आएगी मैंने जो सोच कि दीवारें बना कर रखी उन दीवारों से भी तू पार चली जाएगी ढूंढता फिरता हूँ बस्ती बस्ती सहरा सहारा तू किसी कहानी के किरदार सी नजर आएगी आराधना राय "अरु"