तमाम इश्क -मौहब्बत के अफ़साने अधूरे लगते है। सीरी -फरहाद , हीर-राँझा, सोनी- महिवाल , ससि -पूनो ,रोमियो -जूलियट के फ़साने बहाने कि तरह लगते है। मौत को बहला कर हो गए वो फ़ना मौहब्बत के लिए गर वो जीते तो बहलाते किस तरह नून ,तेल लकड़ी में फसी होती सीरी भी हीर भी सोनी भी राशन कि लाइन में खड़े होते फरहाद , राँझे , महिवाल ना जाने किस तरह या जुटे होते हरे पत्ते कमाने कि होड़ में तब सीरी , ससि ,सोनी, हीर , जूलियट लगी होती जीवन के अजीब -गरीब जोड़ में अब ये बात सोच कर भी हँसी सी आई है जीवन के उहा -पोस में मौहब्बत कहाँ बच पाई है। आराधना राय
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