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Showing posts from June 19, 2015

गुज़रा

गुज़रा  ------------------------------------------------------------------------------------ वक़त निकला बहलने बहलाने में जैसा भी गुज़रा रेत पर जैसे यू ही वो हँस कर अभी अभी ही गुज़रा वो मेरी दिल कि राह गुज़र से हो कर जब भी गुज़रा वो मेरे जिस्म को नहीं मेरी  रूह को छू कर ही गुज़रा वो यू  करता रहा डूब कर दूर से प्यार कुछ यू मुझको  ठंडी फुहार सा दिल पे यू ही वो  दस्तक दे कर गुज़रा वो यू ही  करता रहा  दूर से बस  प्यार कुछ  मुझको ठंडी हवा का झोंका सा वो  दिल से ही हो  कर गुज़रा उसकी आँखों से देखती हूँ सारा ही ये अनछुआ ज़हान अधूरा फ़साना थी "अरु" वो मुझे मुकम्मल कर गुज़रा आराधना राय 

बारात चली थी

बारात चली थी  ----------------------------------------- वो हाथों कि मेंहदी दिखाते है  हमारे दिल को क्यू खूँ में नहलाते है  उसकी आंखों में सिर्फ लाली थी  वो किसी और कि हमेशा जो होने वाली थी  सब ने लाल जोड़ें में सजे देखा  उस के दिल के दर्द को किसी ने ना देखा था  तमाम खुशियों कि बारात सजी थी  बड़ी ख़ामोशी से इश्क़ कि अर्थी सजने वाली थी  बडी धूम से डोली उठी थी  किसे पता "अरु " वो लाचारी साथ लेकर चली थी  आराधना राय 

पहचान लेगा

-------------------------------------------------- मेरा  दिल  तुझे भी यू ही कही  ढूँढ लेगा  तेरी आहट को दूर से सही , पहचान लेगा  गुमशुदा हो दूर जाओ अगर चे तुम कहीं   दुनियाँ का बाजार तुम्हें भी पहचान लेगा  किसी सोच में नहीं रूह में ही थाम लेगा हर बात "अरु" को  निगाहें यार मान लेगा   आराधना राय