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गुज़रा


गुज़रा 

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वक़त निकला बहलने बहलाने में जैसा भी गुज़रा
रेत पर जैसे यू ही वो हँस कर अभी अभी ही गुज़रा

वो मेरी दिल कि राह गुज़र से हो कर जब भी गुज़रा
वो मेरे जिस्म को नहीं मेरी  रूह को छू कर ही गुज़रा

वो यू  करता रहा डूब कर दूर से प्यार कुछ यू मुझको
 ठंडी फुहार सा दिल पे यू ही वो  दस्तक दे कर गुज़रा

वो यू ही  करता रहा  दूर से बस  प्यार कुछ  मुझको
ठंडी हवा का झोंका सा वो  दिल से ही हो  कर गुज़रा

उसकी आँखों से देखती हूँ सारा ही ये अनछुआ ज़हान
अधूरा फ़साना थी "अरु" वो मुझे मुकम्मल कर गुज़रा
आराधना राय 

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ग़ज़ल

लगी थी तोमहते उस पर जमाने में एक मुद्दत लगी उसे घर लौट के आने में हम मशगुल थे घर दिया ज़लाने में लग गई आग सारे जमाने में लगेगी सदिया रूठो को मानने में अजब सी बात है ये दिल के फसाने में उम्र गुजरी है एक एक पैसा कमाने में मिट्टी से खुद घर अपना बनाने में आराधना राय 

राहत

ना काबा ना काशी में सकूं मिला दिल को दिल से राहत थी जब विसाल -ए -सनम मिला। ज़िंदगी का कहर झेल कर मिला बीच बाज़ार में खुद को  नीलम कर गया यू  हर आदमी मिला राह में वो इस तरह कोई चाहतों से ना मिला रूह बेकरार रहे कोई "अरु" और वो अब्र ना कभी हमसे यू मिला आराधना राय copyright :  Rai Aradhana  ©
कैसे -कैसे दिन हमने काटे है  अपने रिश्ते खुद हमने छांटे है पाँव में चुभते जाने कितने कांटे है आँखों में अब ख़ाली ख़ाली राते है इस दुनिया में कैसे कैसे नाते है तेरी- मेरी रह गई कितनी बातें है दिल में तूफान छुपाये बैठे है  बिन बोली सी जैसे बरसाते है