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Showing posts from March 13, 2015

इकरार

वो बच गया सौ-सौ ख़ून कर के भी हम ही  तड़पे   इकरार कर के भी। न कोई  शिकवा ना कोई  गिला था  जो मिला  था नसीब से ही मिला था तुम्हारी पेशानियों  पर, जो सलवटे हैं मेरी ही सोच के ये सब  सिल-सिले  है तुम्हारी बातें मेरी ज़हन को लुभाती है मेरी हर सोच में  कहीं बस से गये  हो गज़ब सी दांस्ता मेरी अजब आरजू है न बन सकी कभी , न बिगाड़ी गई  है। हर एक बात उसकी कुछ लाज़मी सी  थी अंदाज़ भी बड़ा हीं उसका आशिक़ाना था यही हर बार हंस कर सोचते क्यों "अना" जो कल तलक अपना था आज बेगाना  है     आराधना ''अना''संक्षिप्त नाम का  उर्दू में अना का मतलब है    self-respect 

हाल -ए दिल

हाल -ए दिल --------------------- तुझ से रूठी हुई हूँ आओ माना लो मुझको दूर से ही सही आवाज़, लगा लो मुझको हाल -ए दिल पूछते हो गैर से क्या दिल धड़कने का सबब तेरे कोई और है क्या दो घड़ी का है सफ़र मुझको बताता है कोई साथ फिर कैसे रहेगा ,मुझको बताता है कोई खुद से ग़मगीन नहीं ,तुझ से मुतमईन नहीं मै ज़फा ना कर सकी तेरी वफाओं से कभी आराधना

नहीं जानती हूँ।

अभी मैं लिखना नहीं जानती हूँ , ख़्वाब बुनती हूँ मन के धागों से जिसे सिलना भी नहीं जानती हूँ , कोई ओस की बूंद  हाथ में आई, मानो शबनमी  धूप में फिर  हो नहाई। क्या कहू  ज़ज़्बात कि ही मानती हूँ, अभी तो मैं लिखना भी नहीं जानती  हूँ। कोई मीठी सी बात होठो पे आकर मुस्कुराई, उसे तो मैं अभी  जीना भी नहीं जानती हूँ। आराधना

कारोबार किया।

सुख -सपनों कि राह ही  छोड़ कर बस दुःख  का ही कारोबार किया। मूक हो चूके जिनके सब  स्वर ही बस उनका ही गुणगान किया। भला -बुरा सोचा ही कब किसने सत्य समर्पण बारम्बार किया। लेना -देना ही  जिनकी थी  नियत रीते हाथ  से  प्रेम व्यवहार किया। सुख -सपनों कि  राह ही   छोड़ कर बस दुःख का ही कारोबार  किया। आराधना