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पर्यावरण पर कविता .....धरती का दुःख

पर्यावरण पर  कविता

धरती का दुःख
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वो बुरी शक्ल लिए मिलने आई थी
हाथों मैं कटोरा भीख का ले आई थी

रूखे -सूखे  केश लिए कहने आई थी
आहात थी दुःख साथ ही ले आई थी

आँखों में आँसू भर वो जब कराही थी
दर्द कि आवाज़ नहीं सुनाने आई थी

धरती थी अपनी पीड़ा बताने आई थी
कौन सी त्रासदी उसे नहीं रास आई थी

वृक्ष , वन , नदी सब का दर्द ले आई थी
बात  किसी कि समझ  में नहीं आई थी

प्रकृति का उपहास मनुज ने  उड़ाया था
विपति उपहार स्वरुप घर ले  आया था

जब धरा ने तीष्ण हथियार ही उठाया था
हाय किस्मत ने भी तो बड़ा ही रुलाया था

आदति जब श्रृंगार कर के स्वयं ही आई थी
मनुज तूझे  बलात्कार क्यों रास आया था
आराधना राय













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ग़ज़ल

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राहत

ना काबा ना काशी में सकूं मिला दिल को दिल से राहत थी जब विसाल -ए -सनम मिला। ज़िंदगी का कहर झेल कर मिला बीच बाज़ार में खुद को  नीलम कर गया यू  हर आदमी मिला राह में वो इस तरह कोई चाहतों से ना मिला रूह बेकरार रहे कोई "अरु" और वो अब्र ना कभी हमसे यू मिला आराधना राय copyright :  Rai Aradhana  ©