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बचपन






  बचपन


  कभी  बेवज़ह , रूठना   और     मनना,
  बिना बात के वो  पहरो   खिलखिलाना

  कही देर तक गुम हो,  गुप चुप यू खेलना
 दोपहर  गर्मियों  की इस तरह से बिताना 
 वो हाथो से  तितली,  पकड़ने की   बाते 
 और  बातो ही बातो में  दिन  का  गुज़रना

 वो पीठु का गिरना , वो गिली का ढूढ़ना
  वो  कंचो का पीटना , स्तापु का टूट जाना

 हर एक बात में चीख चिल्लाहट करना
वो खुश हो कर , जीत का जश्न मानना

  वो झूले पे  झूलने की  हसीं , जवां  बाते
  वो आसमा को  पींगे  बढ़ाके छु  लेना


 वो बचपन के दिन थे और ख्वाबो  की राते
 जैसे हो शबनम के मोती बिखेरने की बाते


copyright : Rai Aradhana ©
अना * \आराधना

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आज़ाद नज़्म पेड़ कब मेरा साया बन सके धुप के धर मुझे  विरासत  में मिले आफताब पाने की चाहत में नजाने  कितने ज़ख्म मिले एक तू गर नहीं  होता फर्क किस्मत में भला क्या होता मेरे हिस्से में आँसू थे लिखे तेरे हिस्से में मेहताब मिले एक लिबास डाल के बरसो चले एक दर्द ओढ़ ना जाने कैसे जिए ना दिल होता तो दर्द भी ना होता एक कज़ा लेके हम चलते चले ----- आराधना  राय कज़ा ---- सज़ा -- आफताब -- सूरज ---मेहताब --- चाँद

गीत---- नज़्म

आपकी बातों में जीने का सहारा है राब्ता बातों का हुआ अब दुबारा है अश्क ढले नगमों में किसे गवारा है चाँद तिरे मिलने से रूप को संवारा है आईना बता खुद से कौन सा इशारा है मस्त बहे झोकों में हसीन सा नजारा है अश्कबार आँखों में कौंध रहा शरारा है सिमटी हुई रातों में किसने अब पुकारा है आराधना राय "अरु"

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