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बचपन






  बचपन


  कभी  बेवज़ह , रूठना   और     मनना,
  बिना बात के वो  पहरो   खिलखिलाना

  कही देर तक गुम हो,  गुप चुप यू खेलना
 दोपहर  गर्मियों  की इस तरह से बिताना 
 वो हाथो से  तितली,  पकड़ने की   बाते 
 और  बातो ही बातो में  दिन  का  गुज़रना

 वो पीठु का गिरना , वो गिली का ढूढ़ना
  वो  कंचो का पीटना , स्तापु का टूट जाना

 हर एक बात में चीख चिल्लाहट करना
वो खुश हो कर , जीत का जश्न मानना

  वो झूले पे  झूलने की  हसीं , जवां  बाते
  वो आसमा को  पींगे  बढ़ाके छु  लेना


 वो बचपन के दिन थे और ख्वाबो  की राते
 जैसे हो शबनम के मोती बिखेरने की बाते


copyright : Rai Aradhana ©
अना * \आराधना

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ग़ज़ल

लगी थी तोमहते उस पर जमाने में एक मुद्दत लगी उसे घर लौट के आने में हम मशगुल थे घर दिया ज़लाने में लग गई आग सारे जमाने में लगेगी सदिया रूठो को मानने में अजब सी बात है ये दिल के फसाने में उम्र गुजरी है एक एक पैसा कमाने में मिट्टी से खुद घर अपना बनाने में आराधना राय 

राहत

ना काबा ना काशी में सकूं मिला दिल को दिल से राहत थी जब विसाल -ए -सनम मिला। ज़िंदगी का कहर झेल कर मिला बीच बाज़ार में खुद को  नीलम कर गया यू  हर आदमी मिला राह में वो इस तरह कोई चाहतों से ना मिला रूह बेकरार रहे कोई "अरु" और वो अब्र ना कभी हमसे यू मिला आराधना राय copyright :  Rai Aradhana  ©
कैसे -कैसे दिन हमने काटे है  अपने रिश्ते खुद हमने छांटे है पाँव में चुभते जाने कितने कांटे है आँखों में अब ख़ाली ख़ाली राते है इस दुनिया में कैसे कैसे नाते है तेरी- मेरी रह गई कितनी बातें है दिल में तूफान छुपाये बैठे है  बिन बोली सी जैसे बरसाते है