Skip to main content

नज़्म



अब मेरे दिल को तेरे किस्से नहीं भाते 
कहते है लौट कर गुज़रे जमाने नहीं आते 

इक ठहरा हुआ समंदर है तेरी आँखों में 
छलक कर उसमे से आबसर नहीं आते 

दिल ने जाने कब का धडकना छोड़ दिया है 
रात में तेरे हुस्न के अब सपने नहीं आते 

कुछ नामो के बीच कट गई मेरी दुनियाँ 
अपना हक़ भी अब हम लेने नहीं जाते 

आराधना राय 





Comments

Popular posts from this blog

गीत---- नज़्म

आपकी बातों में जीने का सहारा है राब्ता बातों का हुआ अब दुबारा है अश्क ढले नगमों में किसे गवारा है चाँद तिरे मिलने से रूप को संवारा है आईना बता खुद से कौन सा इशारा है मस्त बहे झोकों में हसीन सा नजारा है अश्कबार आँखों में कौंध रहा शरारा है सिमटी हुई रातों में किसने अब पुकारा है आराधना राय "अरु"

राहत

ना काबा ना काशी में सकूं मिला दिल को दिल से राहत थी जब विसाल -ए -सनम मिला। ज़िंदगी का कहर झेल कर मिला बीच बाज़ार में खुद को  नीलम कर गया यू  हर आदमी मिला राह में वो इस तरह कोई चाहतों से ना मिला रूह बेकरार रहे कोई "अरु" और वो अब्र ना कभी हमसे यू मिला आराधना राय copyright :  Rai Aradhana  ©