अब मेरे दिल को तेरे किस्से नहीं भाते
कहते है लौट कर गुज़रे जमाने नहीं आते
इक ठहरा हुआ समंदर है तेरी आँखों में
छलक कर उसमे से आबसर नहीं आते
दिल ने जाने कब का धडकना छोड़ दिया है
रात में तेरे हुस्न के अब सपने नहीं आते
कुछ नामो के बीच कट गई मेरी दुनियाँ
अपना हक़ भी अब हम लेने नहीं जाते
आराधना राय
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