.शाम धुंधली हुई जाती है.
सुबह से पहले रात आई है
तेरा मिलना न मिलना
इतफाक सा रहा होगा
वरना गेरों का होसला
इतना बढ़ गया होता
रात आयगी चुन लेगी
अपनी नज़र से तुम्हे
मैं सुबह सी तेरे द्वार
पर नज़र आ जाउंगी
काश ये ज़िन्दगी मेरी
वफ़ा का इनाम होती
दूर से तेरेआने की सदा
तुझ से पहले जाना लेती
मन का दीप जला कर
बुझा देता है यहाँ कोई
हम शमा के आसरे ही
तकदीरी बना बैठे है
नूर मंदिर का हो या
मस्जिद या गिरजे का
लो तो लौं है वो रोशनी
कर के ही कही जाएगी
आराधना राय 'अरु'
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