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सुबह से पहले


.शाम धुंधली हुई जाती है.
 सुबह से पहले रात आई है

तेरा मिलना न मिलना
इतफाक सा रहा होगा

वरना गेरों का होसला
इतना  बढ़ गया होता

रात आयगी चुन लेगी
अपनी नज़र से तुम्हे

मैं सुबह सी तेरे द्वार
पर नज़र आ जाउंगी

काश ये ज़िन्दगी मेरी 
वफ़ा का इनाम  होती

दूर से तेरेआने की सदा
तुझ से पहले जाना लेती 

मन का दीप जला कर 
बुझा देता है यहाँ कोई

हम शमा के आसरे ही
तकदीरी बना  बैठे है

नूर मंदिर का हो या
मस्जिद  या गिरजे का

लो तो लौं है वो रोशनी
कर के ही कही जाएगी
आराधना राय 'अरु'

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कैसे -कैसे दिन हमने काटे है  अपने रिश्ते खुद हमने छांटे है पाँव में चुभते जाने कितने कांटे है आँखों में अब ख़ाली ख़ाली राते है इस दुनिया में कैसे कैसे नाते है तेरी- मेरी रह गई कितनी बातें है दिल में तूफान छुपाये बैठे है  बिन बोली सी जैसे बरसाते है

ग़ज़ल

लगी थी तोमहते उस पर जमाने में एक मुद्दत लगी उसे घर लौट के आने में हम मशगुल थे घर दिया ज़लाने में लग गई आग सारे जमाने में लगेगी सदिया रूठो को मानने में अजब सी बात है ये दिल के फसाने में उम्र गुजरी है एक एक पैसा कमाने में मिट्टी से खुद घर अपना बनाने में आराधना राय 

राहत

ना काबा ना काशी में सकूं मिला दिल को दिल से राहत थी जब विसाल -ए -सनम मिला। ज़िंदगी का कहर झेल कर मिला बीच बाज़ार में खुद को  नीलम कर गया यू  हर आदमी मिला राह में वो इस तरह कोई चाहतों से ना मिला रूह बेकरार रहे कोई "अरु" और वो अब्र ना कभी हमसे यू मिला आराधना राय copyright :  Rai Aradhana  ©