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नज्म

   
नज्म
इश्क़ कि बाते सभी करते है क्या जाने 
 दिल अपना के रखते है क्या वो क्या जाने

इश्क़ का जादू है मिराज़ है धोका क्या जाने
मर कर जीते  है रस्म ए अदायगी क्या जाने

आग सीने में लगी है दिल का तमाशा क्या जाने 
दो बूंद थे दिल के छलक गए वफा के नाम क्या जाने

वो खाक उड़ाते है, रास्तों पर क्यू  कहाँ क्या जाने
हम उनको दुआ देते है,रह रह कर अरु क्या जाने

नज्म आराधना राय अरु
नज्म में भार तोल माप होता है पर रदीफ और काफिया नहीं

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ग़ज़ल

लगी थी तोमहते उस पर जमाने में एक मुद्दत लगी उसे घर लौट के आने में हम मशगुल थे घर दिया ज़लाने में लग गई आग सारे जमाने में लगेगी सदिया रूठो को मानने में अजब सी बात है ये दिल के फसाने में उम्र गुजरी है एक एक पैसा कमाने में मिट्टी से खुद घर अपना बनाने में आराधना राय 

राहत

ना काबा ना काशी में सकूं मिला दिल को दिल से राहत थी जब विसाल -ए -सनम मिला। ज़िंदगी का कहर झेल कर मिला बीच बाज़ार में खुद को  नीलम कर गया यू  हर आदमी मिला राह में वो इस तरह कोई चाहतों से ना मिला रूह बेकरार रहे कोई "अरु" और वो अब्र ना कभी हमसे यू मिला आराधना राय copyright :  Rai Aradhana  ©
कैसे -कैसे दिन हमने काटे है  अपने रिश्ते खुद हमने छांटे है पाँव में चुभते जाने कितने कांटे है आँखों में अब ख़ाली ख़ाली राते है इस दुनिया में कैसे कैसे नाते है तेरी- मेरी रह गई कितनी बातें है दिल में तूफान छुपाये बैठे है  बिन बोली सी जैसे बरसाते है