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वक्त लधुकथा

               
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तीनों ने समान बंधा और अपने अपने गंतव्य स्थल पर पहुँच कर एक दुसरे को लिखा, सफर अच्छा रहा ना में पटरी से उतरी ना लुटी गई..... ...
दूसरी ने लिखा अच्छा रहा ना किसी ने बम लगाया ना हिंदी इंग्लिश मराठी के नाम पर तोड़ा
तीसरी ने लिखा बेटे सब ठीक रहा पर आज मेरा आखरी दिन था किसी ने नही बताया और मेरी जगह किसी और को दे कर कहा सुखी रहो........................अभी जंग नहीं लगा इसलिए संग्रहालय में जा रही हूँ।

आराधना राय अरु

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कैसे -कैसे दिन हमने काटे है  अपने रिश्ते खुद हमने छांटे है पाँव में चुभते जाने कितने कांटे है आँखों में अब ख़ाली ख़ाली राते है इस दुनिया में कैसे कैसे नाते है तेरी- मेरी रह गई कितनी बातें है दिल में तूफान छुपाये बैठे है  बिन बोली सी जैसे बरसाते है

ग़ज़ल

लगी थी तोमहते उस पर जमाने में एक मुद्दत लगी उसे घर लौट के आने में हम मशगुल थे घर दिया ज़लाने में लग गई आग सारे जमाने में लगेगी सदिया रूठो को मानने में अजब सी बात है ये दिल के फसाने में उम्र गुजरी है एक एक पैसा कमाने में मिट्टी से खुद घर अपना बनाने में आराधना राय 

राहत

ना काबा ना काशी में सकूं मिला दिल को दिल से राहत थी जब विसाल -ए -सनम मिला। ज़िंदगी का कहर झेल कर मिला बीच बाज़ार में खुद को  नीलम कर गया यू  हर आदमी मिला राह में वो इस तरह कोई चाहतों से ना मिला रूह बेकरार रहे कोई "अरु" और वो अब्र ना कभी हमसे यू मिला आराधना राय copyright :  Rai Aradhana  ©