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गीत---- नज़्म



आपकी बातों में जीने का सहारा है
राब्ता बातों का हुआ अब दुबारा है

अश्क ढले नगमों में किसे गवारा है
चाँद तिरे मिलने से रूप को संवारा है

आईना बता खुद से कौन सा इशारा है
मस्त बहे झोकों में हसीन सा नजारा है

अश्कबार आँखों में कौंध रहा शरारा है
सिमटी हुई रातों में किसने अब पुकारा है

आराधना राय "अरु"

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नज़्म

अब मेरे दिल को तेरे किस्से नहीं भाते  कहते है लौट कर गुज़रे जमाने नहीं आते  इक ठहरा हुआ समंदर है तेरी आँखों में  छलक कर उसमे से आबसर नहीं आते  दिल ने जाने कब का धडकना छोड़ दिया है  रात में तेरे हुस्न के अब सपने नहीं आते  कुछ नामो के बीच कट गई मेरी दुनियाँ  अपना हक़ भी अब हम लेने नहीं जाते  आराधना राय 

राहत

ना काबा ना काशी में सकूं मिला दिल को दिल से राहत थी जब विसाल -ए -सनम मिला। ज़िंदगी का कहर झेल कर मिला बीच बाज़ार में खुद को  नीलम कर गया यू  हर आदमी मिला राह में वो इस तरह कोई चाहतों से ना मिला रूह बेकरार रहे कोई "अरु" और वो अब्र ना कभी हमसे यू मिला आराधना राय copyright :  Rai Aradhana  ©