रोज़ खून से जिंदगी नहाती रही है
दो निवालों के लिए बंटती रही है
अंदर बाहर घर में पिसती रही है
जिंदगी घाव सी तू रिसती रही है
ज़िस्म में बस टीस सी उठ रही है
बे बात कसौटी पर कसती रही है
रात दिन कसमसाती रह गई है
इंतजार किस का करती रही है
जिंदगी दो पाटों में बंटती गई है
जिंदगी तू मुझे कहाँ मय्सर हुई है
टुकडों - टुकड़ों में मिलती रही है
आराधना राय "अरु"
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