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कविता अतुकांत

जो नहीं मिला
 उस कि तलाश में सब है
ताश के घर में सब
 के सब बंद है
पुरजे- पुरजे हो कर 
अभी बिखरा है
जोड़ -जोड़ कर पैबंद 
सा सीते है सभी
मर कर भी ख़ुश ही
 इस दुनियाँ मैं
कागजों का व्यापार
 ढूंढते है सभी
सोचते है पैसो से खरीद 
ली दुनियाँ
इश्क़ भी खरीदते है
 वही
ना जाने किसकी
 मजबूरियों को
प्रेम, इश्क, वफ़ा का
 नाम दिया
उसे खरीद कर ना जाने किस 
दिल के साथ खिलवाड़ किया

प्रेम , ढाई शब्दों का ही सही
लेकिन करोड़ों में नहीं बिकता अभी
क्योकि इस दुनियाँ मैं
राधा-कृष्ण सा प्यार नहीं मिलता कभी

आराधना राय "अरु"



जो नहीं मिला वो एतबार ढूंढते है 
अपना खोया हुआ विश्वास ढूंढते है 

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ग़ज़ल

लगी थी तोमहते उस पर जमाने में एक मुद्दत लगी उसे घर लौट के आने में हम मशगुल थे घर दिया ज़लाने में लग गई आग सारे जमाने में लगेगी सदिया रूठो को मानने में अजब सी बात है ये दिल के फसाने में उम्र गुजरी है एक एक पैसा कमाने में मिट्टी से खुद घर अपना बनाने में आराधना राय 

राहत

ना काबा ना काशी में सकूं मिला दिल को दिल से राहत थी जब विसाल -ए -सनम मिला। ज़िंदगी का कहर झेल कर मिला बीच बाज़ार में खुद को  नीलम कर गया यू  हर आदमी मिला राह में वो इस तरह कोई चाहतों से ना मिला रूह बेकरार रहे कोई "अरु" और वो अब्र ना कभी हमसे यू मिला आराधना राय copyright :  Rai Aradhana  ©
कैसे -कैसे दिन हमने काटे है  अपने रिश्ते खुद हमने छांटे है पाँव में चुभते जाने कितने कांटे है आँखों में अब ख़ाली ख़ाली राते है इस दुनिया में कैसे कैसे नाते है तेरी- मेरी रह गई कितनी बातें है दिल में तूफान छुपाये बैठे है  बिन बोली सी जैसे बरसाते है