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धुँआ



धुँआ
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धुँआ - धुँआ सी ज़िन्दगी
ना मचल अब के बहार है
खिज़ा की पहल हो चुकी
ना देख जश्न- ए -बहार है
वो तड़प रही ना मकाम अब
ना ही पहले सा वो प्यार अब
तू खुलूसियत के ना जाम भर
दाग से ना दामन चाक कर
जो चमन कली की ना रही
उस पे जां तू ना निसार कर
वक़्त कि मार से सहरा हुआ
वो बाग़ कब यहाँ हरा हुआ
उस पर खिज़ा कि थी नज़र
वो अब के किस के नजर हुआ
 ये जिंदगी धुएं सा  निगल रही
ना मचल के अब तो बहार है
आराधना राय "अरु"





































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ना काबा ना काशी में सकूं मिला दिल को दिल से राहत थी जब विसाल -ए -सनम मिला। ज़िंदगी का कहर झेल कर मिला बीच बाज़ार में खुद को  नीलम कर गया यू  हर आदमी मिला राह में वो इस तरह कोई चाहतों से ना मिला रूह बेकरार रहे कोई "अरु" और वो अब्र ना कभी हमसे यू मिला आराधना राय copyright :  Rai Aradhana  ©