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धुँआ



धुँआ
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धुँआ - धुँआ सी ज़िन्दगी
ना मचल अब के बहार है
खिज़ा की पहल हो चुकी
ना देख जश्न- ए -बहार है
वो तड़प रही ना मकाम अब
ना ही पहले सा वो प्यार अब
तू खुलूसियत के ना जाम भर
दाग से ना दामन चाक कर
जो चमन कली की ना रही
उस पे जां तू ना निसार कर
वक़्त कि मार से सहरा हुआ
वो बाग़ कब यहाँ हरा हुआ
उस पर खिज़ा कि थी नज़र
वो अब के किस के नजर हुआ
 ये जिंदगी धुएं सा  निगल रही
ना मचल के अब तो बहार है
आराधना राय "अरु"





































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ग़ज़ल

लगी थी तोमहते उस पर जमाने में एक मुद्दत लगी उसे घर लौट के आने में हम मशगुल थे घर दिया ज़लाने में लग गई आग सारे जमाने में लगेगी सदिया रूठो को मानने में अजब सी बात है ये दिल के फसाने में उम्र गुजरी है एक एक पैसा कमाने में मिट्टी से खुद घर अपना बनाने में आराधना राय 

राहत

ना काबा ना काशी में सकूं मिला दिल को दिल से राहत थी जब विसाल -ए -सनम मिला। ज़िंदगी का कहर झेल कर मिला बीच बाज़ार में खुद को  नीलम कर गया यू  हर आदमी मिला राह में वो इस तरह कोई चाहतों से ना मिला रूह बेकरार रहे कोई "अरु" और वो अब्र ना कभी हमसे यू मिला आराधना राय copyright :  Rai Aradhana  ©
कैसे -कैसे दिन हमने काटे है  अपने रिश्ते खुद हमने छांटे है पाँव में चुभते जाने कितने कांटे है आँखों में अब ख़ाली ख़ाली राते है इस दुनिया में कैसे कैसे नाते है तेरी- मेरी रह गई कितनी बातें है दिल में तूफान छुपाये बैठे है  बिन बोली सी जैसे बरसाते है