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दिल नज़्म





 सौ-सौ किए सवाल दिल -ए  नाशाद कि खातिर
 ढूंढा किए जवाब ख्वाबों कि उम्मीद कि खातिर

 धडकता है ना जाने कितने अहसास लिए दिल
क्या - क्या ना सहा इस में छिपी याद कि खातिर

सब कुछ करीने से सज़ा रखा है जाने किसके लिए
इक दिन बदल जाएगा सब किस सय्याद कि खातिर

शाद हुआ कभी नाशाद हुआ दिल दामन से लिपट कर
दिन साल महीने गिनता रहा किस मीयाद कि खातिर

खाली मकान नहीं रख लिया सामान फिर क्यूँ तिरा
 बताता नहीं कुछ जी रहा है दिल ए बर्बाद कि खातिर

रगों  से होकर ज़िस्म तक खून कि बात कहता है दिल
आवाज़ दे रहा है परिंदों को ''अरु" फरियाद कि खातिर

आराधना राय  ''अरु"

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ग़ज़ल

लगी थी तोमहते उस पर जमाने में एक मुद्दत लगी उसे घर लौट के आने में हम मशगुल थे घर दिया ज़लाने में लग गई आग सारे जमाने में लगेगी सदिया रूठो को मानने में अजब सी बात है ये दिल के फसाने में उम्र गुजरी है एक एक पैसा कमाने में मिट्टी से खुद घर अपना बनाने में आराधना राय 

राहत

ना काबा ना काशी में सकूं मिला दिल को दिल से राहत थी जब विसाल -ए -सनम मिला। ज़िंदगी का कहर झेल कर मिला बीच बाज़ार में खुद को  नीलम कर गया यू  हर आदमी मिला राह में वो इस तरह कोई चाहतों से ना मिला रूह बेकरार रहे कोई "अरु" और वो अब्र ना कभी हमसे यू मिला आराधना राय copyright :  Rai Aradhana  ©
कैसे -कैसे दिन हमने काटे है  अपने रिश्ते खुद हमने छांटे है पाँव में चुभते जाने कितने कांटे है आँखों में अब ख़ाली ख़ाली राते है इस दुनिया में कैसे कैसे नाते है तेरी- मेरी रह गई कितनी बातें है दिल में तूफान छुपाये बैठे है  बिन बोली सी जैसे बरसाते है