दुनियाँ के दोहरेमापदंड पर जीवन ना जी के उसने उसी जीवन को स्वीकार किया जो उसका का था,जिसे जीने के लिए, किसी से छिपना नहीं पड़ा।
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"ज़र्द चेहरा गुम है रंगत दिल कहे कुछ और है
बढ़ गई मुश्किल खुदाया हैरां मुस्लसल कौन है "
सुंदर दो जोड़ी आँखे चेहरे पर टिका कर जब उसने पूछा तो राजन मन ही मन में शेर कह उठा , हालांकि शायर नहीं था वो पर उर्वशी को देख कर हो जाना चाहता था ।
"दो मिनट रुकेगे" , कार में बैठे राजन से उसने कहा ।
कोई बात नहीं आप जाए में इंतजार करूँगा, गोरा सुंदर चेहरा , सुडौल देहयिष्ट, शिफोन की नीली साड़ी में नीलाभ आभा लिए मासूम मुस्कुराहट लिए उर्वशी दुकान की ओर चली गई ।
राजन देर तक उसे देखता रहा, ना जाने क्या था जो उस की ओर खिंचा चला गया, तीन साल तक उसे देखता था पर बोलता नहीं था ।
उसी के फ्लोर पर रहती रोज़ उसी के आफ़िस में उसे दिखाई देती रही, पर उस से बात करने की हिम्मत वो जुटा नहीं सका ।आज भगवान भी माँगे होते तो मिल जाते वो धीरे से मुस्कुरा उठा, हाथ में ढेर सारे पैकेट लिए उर्वशी दुकान से वापस कार में बैठ गई ।
"शॉपिंग हो गई" एक निरर्थक सी बात जो शायद जबरदस्ती कही जा रही थी , प्रतिउत्तर में उर्वशी ने धीरे से सर हिला दिया ।
घर वापस आ कर उर्वशी अपने फ़्लैट पर चली गई ,इसके बाद राजन अपने घर जाने अनजाने दोनो मिल ही जाते थे , कभी सीढ़ियों पर कभी कॉरिडोर में और अक्सर घर से ऑफिस छोड़ते हुए ।
एक बिल्डिंग में रहते है , पर ऑफिस में अज़नबी बन जाते यही बात थी की देव ने जब देखा तो बोल गया " क्या बात है गुरु , गोटी अच्छी फिट की है ?
"ऑफिस भी घर में भी" ?
राजन को अच्छा नहीं लगा आज तो कह दिया आगे मत कहना ?
उस दिन से ज़्यादा परेशान रहने लगा था राजन , शायद दूसरी नौकरी देख रहा था ।
एक गुलाबी कागज़ में लिपटा एक नोट मिला । जो दरवाजे के नीचे से सरकाया गया था शाम को
मिलो पता था कहाँ ? सो तकलीफ नहीं हुई ।
उसे ढूंढने में दिक्कत नहीं हुई , हलके कत्थई लिबास में वो वाकई सुंदर लग रही थी ।
"क्या लोगी राजन ने पूछा" ।
"व्हिस्की और स्कॉच तो नहीं ले सकती आयरिश टी चलेगी" ।
उर्वशी ने मुस्कुरा कर कहा ।
"सुना है दूसरी नौकरी देख रहे हो ?उर्वशी ने खामोश निगाहों से पूछा ।
"हाँ " राजन ने सहमति से सर हिलाया ।
"अच्छा है कम से कम मेरे साथ बदनाम होने से बच जाओगे" , उर्वशी ने एक ठंडी साँस ली उसकी आँखों में आँसू थे
जितनी आसानी से उसने कहा उसे राजन ने सोचा भी ना था, ।
"हम एक ही बिल्डिग में रहते है, मिल सकते है पर ऑफिस का मेरा क्लीग तुम्हें देख चूका है"अजब असमंजस में पड़ गया हूँ , राजन ने कहा ।
"अच्छा" उर्वशी ने सर नीचे किए जवाब दिया ।
उर्वशी नीचे सर कर कुछ सोचती रही बालों को झटक कर फिर खड़ी हो गई ।
"अब चलो साथ ही चलते है फिर बिल्डिग वाले कुछ कहे तो अपना घर भी बदल लेना "उर्वशी ने कहा ।
"क्यों ऐसा क्यू कह रही हो "राजन पीछे पीछे हो लिया ।
उर्वशी के कार में बैठ कर लगा कुछ हुआ तो ज़रूर है, पर उर्वशी को क्या बुरा लगा पता नहीं चला ।
हम जिस तरह से मिलते है और तूम ही क्या राजन में और पुरुष मित्रों से भी मिलती हूँ ।
पहले से अच्छी खासी बदनाम हूँ...?
अकेली हूँ , एक अकेली औरत की मज़बूरी नहीं ज़रूरत बढ़ जाती है जब साथ में एक बच्चा पालना हो
और मेरे जैसी जो आज नौकरी करें कल छोड़ दे। मदद माँगती हूँ जहाँ से मिलती है ,और दुनियाँ में कोई चीज़ मुफ्त नहीं मिलती मेरे माँ -बाबा नहीं की कोई पाल देगा मुझे ।
"अब तूम चाहो तो नौकरी छोड़ दो . चाहो तो बिल्डिग भी ,आज भी सब ने देखा है की तुमने मुझे अपने बगल की सीट पर बैठाया है" । उर्वशी ने कहा ।
आँखों में आँखे डाल कर उर्वशी ने जो कहा, उस से राजन अचकचा गया ।
फिर सम्हल कर उसने पूछा
"अगर कोई ऐसा मिल जाए की किसी की मदद लेनी ही नहीं पड़े तब" , उर्वशी को हँसी आ गई पिछले सात साल से हर कोई प्रपोज़ तो कर रहा था ,पर हिम्मत किस में थी सभी कीआँखों में सवाल थे पर जवाब कोई नहीं बन सका उसका , पर उसने राजन को कहा कुछ नहीं ।
"ना बाबा मेरे दोस्त ही अच्छे जो जानते तो है कि मैं कैसी हूँ,कम से कम वो कोई बात लिहाफ में छुपा कर नहीं कहते ।
"मैं एक बदनाम औरत हूँ और मेरे दोस्त साथी सब मेरे जैसे, पवित्रता का ढ़ोग करना नहीं आता हमें ।
जिस दिन मेरी बेटी बड़ी हो जाएगी वो दुनियाँ की समझ से चलेगी अकेली नहीं होगी वो मेरी बदनामी भी उसके ही काम आएगी राजन,आजकल की दूनियाँ में बच्चे माँ -बाप के कब है , आज सुप्रिया बोर्डिंग में है उसकी पढाई jज्यादा ज़रुरी है मेरे घर बसाने से कम से कम उसके पास माँ तो है ।
उर्वशी मुस्कुराती हुई कार से उतर गई जैसे दुनियाँ को ठोकर मार रही हो , अचानक राजन को लगा उर्वशी ने अनोखा सच बोल कर उसे भी खुद उसकी नजरों में गिरने से बचा लिया ।
दोस्त है मेरी तो पाने की चाहत तो होगी ....फिर क्या पता कल परिवार वालों को कन्विन्स नहीं कर पाया तो ...? हर कोई मज़बूरी बता कर ही मासूम बन दूसरों पर दाग लगा जाता है ।
उसे लगा जो औरत अपने आप को बदनाम कह कर चली गई ,वो दुनियाँ के हालात की मारी है ।कोई फेमिनिस्ट नहीं है...?
अगले दिन उर्वशी सीढियों से नीचे उतरी तो सामने राजन खड़ा था,मुस्कुरा कर उसने कार का दरवाज़ा खोल दिया ।
समझ लेना में भी फ्लर्ट हूँ पर शायद ये फ्लर्ट तुम्हारा दोस्त निकले धोखे बाज़ नहीं ...?
उर्वशी ने मुस्कुरा के कहा उस की भी आदत है "फिलहाल अभी तूम मेरे साथ हो इतना काफी है पर वफ़ा की ज्यादा उम्मीद मत रखना " ।
सही तो कहा जो जैसा दिखता है वैसा होता कहाँ है, दोहरी खाल ओड़ कर जीने से अच्छा है, जो जैसा है स्वीकार कर लो चोट कम पहुँचती है ।
कहानी--आराधना राय "अरु"
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