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तराना बहार का

चिडियों ने गाया तराना बहार का
रस्मों- रिवाज़ छोड़ कर सब्र-ओ-करार का

उसकी नादानियां भी कबूल हो गई
वादा निभाया जिसने अपने हज़ूर का

दोस्तों ने अपनी सब आदत बदल  ली
करना ना छोड़ा ज़िक्र मेरे शहर का

मालूम क्या रास्तों वो ही  मिले मुझे
साथ देता रहा कोई मेरी राहगुज़र का

ढूंढने से कोई इंसान  दिखाई नहीं दिया
देख लिया हाल  हमने अपने भी शहर का

सूरज ने उग कर फलसफा यही दिया
मुदद्त के बाद देखा "अरु" घर हमने सहर का

आराधना राय "अरु"

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कैसे -कैसे दिन हमने काटे है  अपने रिश्ते खुद हमने छांटे है पाँव में चुभते जाने कितने कांटे है आँखों में अब ख़ाली ख़ाली राते है इस दुनिया में कैसे कैसे नाते है तेरी- मेरी रह गई कितनी बातें है दिल में तूफान छुपाये बैठे है  बिन बोली सी जैसे बरसाते है

ग़ज़ल

लगी थी तोमहते उस पर जमाने में एक मुद्दत लगी उसे घर लौट के आने में हम मशगुल थे घर दिया ज़लाने में लग गई आग सारे जमाने में लगेगी सदिया रूठो को मानने में अजब सी बात है ये दिल के फसाने में उम्र गुजरी है एक एक पैसा कमाने में मिट्टी से खुद घर अपना बनाने में आराधना राय 

राहत

ना काबा ना काशी में सकूं मिला दिल को दिल से राहत थी जब विसाल -ए -सनम मिला। ज़िंदगी का कहर झेल कर मिला बीच बाज़ार में खुद को  नीलम कर गया यू  हर आदमी मिला राह में वो इस तरह कोई चाहतों से ना मिला रूह बेकरार रहे कोई "अरु" और वो अब्र ना कभी हमसे यू मिला आराधना राय copyright :  Rai Aradhana  ©