Skip to main content

तराना बहार का

चिडियों ने गाया तराना बहार का
रस्मों- रिवाज़ छोड़ कर सब्र-ओ-करार का

उसकी नादानियां भी कबूल हो गई
वादा निभाया जिसने अपने हज़ूर का

दोस्तों ने अपनी सब आदत बदल  ली
करना ना छोड़ा ज़िक्र मेरे शहर का

मालूम क्या रास्तों वो ही  मिले मुझे
साथ देता रहा कोई मेरी राहगुज़र का

ढूंढने से कोई इंसान  दिखाई नहीं दिया
देख लिया हाल  हमने अपने भी शहर का

सूरज ने उग कर फलसफा यही दिया
मुदद्त के बाद देखा "अरु" घर हमने सहर का

आराधना राय "अरु"

Comments

Popular posts from this blog

आज़ाद नज़्म पेड़ कब मेरा साया बन सके धुप के धर मुझे  विरासत  में मिले आफताब पाने की चाहत में नजाने  कितने ज़ख्म मिले एक तू गर नहीं  होता फर्क किस्मत में भला क्या होता मेरे हिस्से में आँसू थे लिखे तेरे हिस्से में मेहताब मिले एक लिबास डाल के बरसो चले एक दर्द ओढ़ ना जाने कैसे जिए ना दिल होता तो दर्द भी ना होता एक कज़ा लेके हम चलते चले ----- आराधना  राय कज़ा ---- सज़ा -- आफताब -- सूरज ---मेहताब --- चाँद

गीत---- नज़्म

आपकी बातों में जीने का सहारा है राब्ता बातों का हुआ अब दुबारा है अश्क ढले नगमों में किसे गवारा है चाँद तिरे मिलने से रूप को संवारा है आईना बता खुद से कौन सा इशारा है मस्त बहे झोकों में हसीन सा नजारा है अश्कबार आँखों में कौंध रहा शरारा है सिमटी हुई रातों में किसने अब पुकारा है आराधना राय "अरु"

गीत हूँ।

न मैं मनमीत न जग की रीत ना तेरी प्रीत बता फिर कौन हूँ घटा घनघोर मचाये शोर  मन का मोर नाचे सब ओर बता फिर कौन हूँ मैं धरणी धीर भूमि का गीत अम्बर की मीत अदिति का मान  हूँ आराधना