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नजाब शाहिद मिर्ज़ा "शाहिद" के मिसरे के ऊपर कही गई ग़ज़ल

तिभा-मंच की ओर से नजाब शाहिद मिर्ज़ा "शाहिद" के मिसरे के ऊपर कही गई ग़ज़ल---आर काफिया -रदीफ किसलिए
फिलबदी -110 से हासिल आश्यार अर्ज़ है
मतला - लोगों की नज़र में बने खार किसलिए
चलती है बात-बात में तलवार किसलिए
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मतला -2 रातों को जागते रहे नाउम्मीदी किसलिए
सहते रहे है दर्द हुए बीमार किसलिए
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जुबां से तीर -ओ- खंज़र चलाए हज़ार बार
खामोश हो गए है तलबगार किसलिए
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ज़ख़्म मिले है लोगों से जहां में बार बार
नासूर बन बहे है हरबार किसलिए
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नुमाईश सी बाज़ारों में सजती है लडकियाँ
गुरबत के हाथ रोज़ तिरस्कार किसलिए
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बन गया बाज़ार रातों -रात मेरा तमाम देश
इस माशरे में दहेज़ की दरकार किसलिए
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बातें हुई हज़ार उनके इकरार-इसरार की
उठती है सहन में मगर दीवार किसलिए
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मखता- रोती है गम में आँखे माँ की किसलिए
गोली चली सरहद पे"अरु" आर-पार किसलिए
आराधना राय "अरु ©19 जनवरी 2016

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ग़ज़ल

लगी थी तोमहते उस पर जमाने में एक मुद्दत लगी उसे घर लौट के आने में हम मशगुल थे घर दिया ज़लाने में लग गई आग सारे जमाने में लगेगी सदिया रूठो को मानने में अजब सी बात है ये दिल के फसाने में उम्र गुजरी है एक एक पैसा कमाने में मिट्टी से खुद घर अपना बनाने में आराधना राय 

राहत

ना काबा ना काशी में सकूं मिला दिल को दिल से राहत थी जब विसाल -ए -सनम मिला। ज़िंदगी का कहर झेल कर मिला बीच बाज़ार में खुद को  नीलम कर गया यू  हर आदमी मिला राह में वो इस तरह कोई चाहतों से ना मिला रूह बेकरार रहे कोई "अरु" और वो अब्र ना कभी हमसे यू मिला आराधना राय copyright :  Rai Aradhana  ©
कैसे -कैसे दिन हमने काटे है  अपने रिश्ते खुद हमने छांटे है पाँव में चुभते जाने कितने कांटे है आँखों में अब ख़ाली ख़ाली राते है इस दुनिया में कैसे कैसे नाते है तेरी- मेरी रह गई कितनी बातें है दिल में तूफान छुपाये बैठे है  बिन बोली सी जैसे बरसाते है