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तो क्या होता



रदीफ- तो क्या होता- काफिया होता, क्वाफी-पता , अता,रहता आता खता
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इश्क ना होता बता तो क्या होता
खुदा सामने होता तो क्या होता
उनकी नज़रों से गिरा तो क्या होगा
संभल कर चलना आता तो क्या होगा
उसका जीना मरना मेरे संग होता
बन कर मुरीद रहता तो क्या होता
बंदगी उसकी तिजारत ना होती
होता वफ़ा का पता तो क्या होता
निगाहों का गिरना उठाना ना होता
उसका करम होता अता तो क्या होता
उस की अंजुमन से उठ जाते क्या होता
सह जाते "अरु" खता"तो क्या होता
© आराधना राय "अरु"

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ग़ज़ल

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राहत

ना काबा ना काशी में सकूं मिला दिल को दिल से राहत थी जब विसाल -ए -सनम मिला। ज़िंदगी का कहर झेल कर मिला बीच बाज़ार में खुद को  नीलम कर गया यू  हर आदमी मिला राह में वो इस तरह कोई चाहतों से ना मिला रूह बेकरार रहे कोई "अरु" और वो अब्र ना कभी हमसे यू मिला आराधना राय copyright :  Rai Aradhana  ©