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तो क्या होता



रदीफ- तो क्या होता- काफिया होता, क्वाफी-पता , अता,रहता आता खता
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इश्क ना होता बता तो क्या होता
खुदा सामने होता तो क्या होता
उनकी नज़रों से गिरा तो क्या होगा
संभल कर चलना आता तो क्या होगा
उसका जीना मरना मेरे संग होता
बन कर मुरीद रहता तो क्या होता
बंदगी उसकी तिजारत ना होती
होता वफ़ा का पता तो क्या होता
निगाहों का गिरना उठाना ना होता
उसका करम होता अता तो क्या होता
उस की अंजुमन से उठ जाते क्या होता
सह जाते "अरु" खता"तो क्या होता
© आराधना राय "अरु"

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ग़ज़ल

लगी थी तोमहते उस पर जमाने में एक मुद्दत लगी उसे घर लौट के आने में हम मशगुल थे घर दिया ज़लाने में लग गई आग सारे जमाने में लगेगी सदिया रूठो को मानने में अजब सी बात है ये दिल के फसाने में उम्र गुजरी है एक एक पैसा कमाने में मिट्टी से खुद घर अपना बनाने में आराधना राय 

राहत

ना काबा ना काशी में सकूं मिला दिल को दिल से राहत थी जब विसाल -ए -सनम मिला। ज़िंदगी का कहर झेल कर मिला बीच बाज़ार में खुद को  नीलम कर गया यू  हर आदमी मिला राह में वो इस तरह कोई चाहतों से ना मिला रूह बेकरार रहे कोई "अरु" और वो अब्र ना कभी हमसे यू मिला आराधना राय copyright :  Rai Aradhana  ©
कैसे -कैसे दिन हमने काटे है  अपने रिश्ते खुद हमने छांटे है पाँव में चुभते जाने कितने कांटे है आँखों में अब ख़ाली ख़ाली राते है इस दुनिया में कैसे कैसे नाते है तेरी- मेरी रह गई कितनी बातें है दिल में तूफान छुपाये बैठे है  बिन बोली सी जैसे बरसाते है