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दुश्वारी



जिंदगी के नाम लिख कर दुश्वारी
नेता अपनी चाल -चल कर आए
नून, तेल, लकड़ी हाय मंहगाई
आप अपना जनाज़ा ले कर आए
इक फज़ीहत भला किस को नहीं भाए
गाँव के खेत बेच कर नया मकान ले आए
राहत के नाम राहत सोच कर पछताए
कहाँ से ढूढ़ कर इत्मिनान के पल ले आए
सिल-सिला कौन सा मुझ को तुझ से जोड़ जाए
रहन पे सामान बाज़ार से सब उधार लाए
कौन सारी रात जलता अंधेरों में इक दिया
अपनी किस्मत का अँधेरा "अरु"  खुद ले आए
 ©आराधना राय "अरु"

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कैसे -कैसे दिन हमने काटे है  अपने रिश्ते खुद हमने छांटे है पाँव में चुभते जाने कितने कांटे है आँखों में अब ख़ाली ख़ाली राते है इस दुनिया में कैसे कैसे नाते है तेरी- मेरी रह गई कितनी बातें है दिल में तूफान छुपाये बैठे है  बिन बोली सी जैसे बरसाते है

ग़ज़ल

लगी थी तोमहते उस पर जमाने में एक मुद्दत लगी उसे घर लौट के आने में हम मशगुल थे घर दिया ज़लाने में लग गई आग सारे जमाने में लगेगी सदिया रूठो को मानने में अजब सी बात है ये दिल के फसाने में उम्र गुजरी है एक एक पैसा कमाने में मिट्टी से खुद घर अपना बनाने में आराधना राय 

राहत

ना काबा ना काशी में सकूं मिला दिल को दिल से राहत थी जब विसाल -ए -सनम मिला। ज़िंदगी का कहर झेल कर मिला बीच बाज़ार में खुद को  नीलम कर गया यू  हर आदमी मिला राह में वो इस तरह कोई चाहतों से ना मिला रूह बेकरार रहे कोई "अरु" और वो अब्र ना कभी हमसे यू मिला आराधना राय copyright :  Rai Aradhana  ©