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तमाशा हो गया

सौदा खुद बाज़ार में ये कैसा हो गया
 तमाशाई खुद यहाँ पर तमाशा हो गया

 कौन सा दिन कहर का नाज़िल हो गया
 लोगों की दुश्वारी से कोई परेशां हो गया

 दिल के जाने पर हादसा साथ हो गया
 साहिल पे कश्तियाँ डुबों शर्मिंदा हो गया

बयाँ कर सका ना कोई तकदीर हो गया
जिंदगी तेरे हाथों कोई निराश हो गया

सौ- मुश्किलें पड़ी दिल तार- तार हो गया
बस्ती के लोगों के लिए  कहकशां सा हो गया

अहसान फरामोश ही जब कारवां हो गया
फ़कीरी में रहना भी "अरु" इक नशा हो गया

© आराधना राय "अरु"

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ग़ज़ल

लगी थी तोमहते उस पर जमाने में एक मुद्दत लगी उसे घर लौट के आने में हम मशगुल थे घर दिया ज़लाने में लग गई आग सारे जमाने में लगेगी सदिया रूठो को मानने में अजब सी बात है ये दिल के फसाने में उम्र गुजरी है एक एक पैसा कमाने में मिट्टी से खुद घर अपना बनाने में आराधना राय 

राहत

ना काबा ना काशी में सकूं मिला दिल को दिल से राहत थी जब विसाल -ए -सनम मिला। ज़िंदगी का कहर झेल कर मिला बीच बाज़ार में खुद को  नीलम कर गया यू  हर आदमी मिला राह में वो इस तरह कोई चाहतों से ना मिला रूह बेकरार रहे कोई "अरु" और वो अब्र ना कभी हमसे यू मिला आराधना राय copyright :  Rai Aradhana  ©
कैसे -कैसे दिन हमने काटे है  अपने रिश्ते खुद हमने छांटे है पाँव में चुभते जाने कितने कांटे है आँखों में अब ख़ाली ख़ाली राते है इस दुनिया में कैसे कैसे नाते है तेरी- मेरी रह गई कितनी बातें है दिल में तूफान छुपाये बैठे है  बिन बोली सी जैसे बरसाते है