Skip to main content

पूजा करने वालों को

कविता
------------------------------------
कब तक साहित्य की पूजा करने वालों को
फुटपाथ मिलेगा
--------------------------------------------
जीते जी ज़लने वालों को केवल
भूखा पेट मिलेगा
--------------------------------------------------
धरा की बेटी को कब तक सामाजिक
अपमान मिलेगा
----------------------------------------------------
नव- सृज़न करने वालों को केवल
क्या बाज़ार मिलेगा
----------------------------------------------------------
सूर्य परिक्रमा करती धरती को कभी
व्योम का साथ मिलेगा
----------------------------------------------------------
नारी- का अपमान कर चुके पुरुषों को ईश्वर सम
पूज कर सम्मान मिलेगा
-----------------------------------------------------------
मुरझाए फूलों को क्या इस जीवन में
जीने का अधिकार मिलेगा
----------------------------------------------------------
पाखंड करते लोगों को केवल अब
भ्रमित संसार मिलेगा
---------------------------------------------------------
हाथ कटोरा भीख मांगती इस दुनियाँ को
क्या ईश्वर तेरा साथ मिलेगा
------------------------------------------------------------
वर्जनाओ पर टिकी इस दुनियाँ को
केवल हाहाकार मिलेगा
--------------------------------------------------------------
मस्तक पर चन्दन रख मिथ्या कहने वालों को
केवल बाज़ार मिलेगा
-------------------------------------------------------------------
"अरु" सत्य नहीं बिकता जीवन के रण में चलता है
साथ ईश्वर बन के,अभय- सा जीवन वरदान मिलेगा
--------------------------------------------------------

Comments

Popular posts from this blog

ग़ज़ल

लगी थी तोमहते उस पर जमाने में एक मुद्दत लगी उसे घर लौट के आने में हम मशगुल थे घर दिया ज़लाने में लग गई आग सारे जमाने में लगेगी सदिया रूठो को मानने में अजब सी बात है ये दिल के फसाने में उम्र गुजरी है एक एक पैसा कमाने में मिट्टी से खुद घर अपना बनाने में आराधना राय 

राहत

ना काबा ना काशी में सकूं मिला दिल को दिल से राहत थी जब विसाल -ए -सनम मिला। ज़िंदगी का कहर झेल कर मिला बीच बाज़ार में खुद को  नीलम कर गया यू  हर आदमी मिला राह में वो इस तरह कोई चाहतों से ना मिला रूह बेकरार रहे कोई "अरु" और वो अब्र ना कभी हमसे यू मिला आराधना राय copyright :  Rai Aradhana  ©
कैसे -कैसे दिन हमने काटे है  अपने रिश्ते खुद हमने छांटे है पाँव में चुभते जाने कितने कांटे है आँखों में अब ख़ाली ख़ाली राते है इस दुनिया में कैसे कैसे नाते है तेरी- मेरी रह गई कितनी बातें है दिल में तूफान छुपाये बैठे है  बिन बोली सी जैसे बरसाते है