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तहरीर देखती हूँ

  
साभार गुगल


तहरीर देखती हूँ
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  कागज़ की जुबानी से तहरीर देखती हूँ
  दिल में छुपी तेरी हर तस्वीर देखती हूँ 

  कागज़ नहीं कोरे हर हर्फ तोलती हूँ
  वक़्त की किताबों में तहरीर देखती हूँ

 एहसास लिए खुद के गम को झेलती हूँ
 काँटों में उलझी सी जंजीर देखती हूँ
 
 बागों में गुलों के रंग - बेरंग देखती हूँ
 लफ्जों की बयानी से  ज़मीर देखती हूँ

ख्वाहिशों के जंगल में जुगनु को देखती हूँ
तन्हा रूठी सी तकदीर को देखती हूँ


मायुस नहीं दिल की तमन्ना  देखती हूँ
आँखों से "अरु"दिल कि जागीर  देखती हूँ
आराधना राय "अरु"

आराधना राय "अरु"

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ग़ज़ल

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कैसे -कैसे दिन हमने काटे है  अपने रिश्ते खुद हमने छांटे है पाँव में चुभते जाने कितने कांटे है आँखों में अब ख़ाली ख़ाली राते है इस दुनिया में कैसे कैसे नाते है तेरी- मेरी रह गई कितनी बातें है दिल में तूफान छुपाये बैठे है  बिन बोली सी जैसे बरसाते है