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ज़माने बदल गए



साभार गुगल

मेरे तेरे अब वो ज़माने बदल गए
लोगों के आजकल फसाने बदल गए
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बदहालियों के जुर्म से कैसे निकल गए
रोजी की दौड़ में कितने तराने बदल गए
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आँखों में जाने कितने शरारे मचल गए
ए- आसमां तेरे सारे नज़ारे बदल गए
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ज़मघट लगा कर लोग कितने निकल गए
मिलने मिलाने में कितने ज़माने बदल गए
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रोशनी को देख कर परवाने जल गए
उम्मीद के गाँव से दीवाने बदल गए
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फाका परस्ती में जितने दिन निकल गए
वक़्त के धारे में कितने चेहरे बदल गए
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आसमां के नाम पर "अरु" सितारे बदल गए
गुम चाँदनी हो गई झिलमिल नजारे बदल गए
आराधना राय "अरु"

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ग़ज़ल

लगी थी तोमहते उस पर जमाने में एक मुद्दत लगी उसे घर लौट के आने में हम मशगुल थे घर दिया ज़लाने में लग गई आग सारे जमाने में लगेगी सदिया रूठो को मानने में अजब सी बात है ये दिल के फसाने में उम्र गुजरी है एक एक पैसा कमाने में मिट्टी से खुद घर अपना बनाने में आराधना राय 

राहत

ना काबा ना काशी में सकूं मिला दिल को दिल से राहत थी जब विसाल -ए -सनम मिला। ज़िंदगी का कहर झेल कर मिला बीच बाज़ार में खुद को  नीलम कर गया यू  हर आदमी मिला राह में वो इस तरह कोई चाहतों से ना मिला रूह बेकरार रहे कोई "अरु" और वो अब्र ना कभी हमसे यू मिला आराधना राय copyright :  Rai Aradhana  ©
कैसे -कैसे दिन हमने काटे है  अपने रिश्ते खुद हमने छांटे है पाँव में चुभते जाने कितने कांटे है आँखों में अब ख़ाली ख़ाली राते है इस दुनिया में कैसे कैसे नाते है तेरी- मेरी रह गई कितनी बातें है दिल में तूफान छुपाये बैठे है  बिन बोली सी जैसे बरसाते है